ओशो साहित्य >> आत्म पूजा उपनिषद आत्म पूजा उपनिषदओशो
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आत्म पूजा उपनिषद, दो भागों में...
बुद्धत्व की प्रवाहमान धारा में ओशो एक नया प्रारंभ हैं, वे अतीत की किसी भी धार्मिक परंपरा या श्रृंखला की कड़ी नहीं हैं। ओशो से एक नये युग का शुभारंभ होता है और उनके साथ ही समय दो सुस्पष्ट खंडों में विभाजित होता है: ओशो पूर्व तथा ओशो पश्चात्। ओशो के आगमन से एक नये मनुष्य का, एक नये जगत का, एक नये युग का सूत्रपात हुआ, जिसकी आधार शिला अतीत के किसी धर्म में नहीं है। किसी दार्शनिक विचार पद्धति में नहीं है। ओशो सद्यःस्नात धार्मिकता के प्रथम पुरुष हैं, सर्वथा अनूठे। संबुद्ध रहस्यदर्शी हैं।
इस संग्रह के दो भाग :
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